कैसी कोरी धूप खिली
कैसी सुबह कली खिली
जीवन में और क्या चाहिये।
ऊपर गगन चादर तनी
नीचे घास का पिछौना
मदिर मदिर पवन बहा
फूल झूलता सलोना।
जीवन की बाटिका में
मधु रंगों के मेले में
मन को और क्या चाहिये।
नए मन प्राण मिले
धरती आसमान मिले
इतनी बडी दुनिया में
जीने के सौ सामान मिले।
सिंधु में इक बूँद जैसी
नन्हीं सी जान को
जीवन में और क्या चाहिये।
दिन में तो दौड़ धूप
जाना पड़ेगा काम को
सारे दिन मशीन बने
थक लौटना है शाम को।
रात को लो मीठी नींद
सपने रंगीन देखो
जीवन में और क्या चाहिये।